सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

वलि का बकरा.....

   कच्चे घर के सामने दरवाजे की सहन में कमजोर से खूँटे से बंधी मुनियाँ नाम की बकरी सुबह से मिमिया रही है अब उसका गला भी बैठ गया है मालकिन बूधा देवी से कई बार डंडे भी खा चुकी है इस मिमियाने वाली दर्दनाक चीख के लिए फिर भी उसकी चीख बंद नहीं हो रही है। मालकिन द्वारा दिए गए घास को मेमने से बिछुड़ने के बाद से नहीं खाया है
आज फिर उसका दस माह का तगड़ा मेमना वलि के लिए आए ख़रीददारों को बेच दिया गया फिर भी वह उसके आने की आश में है ।शायद उसकी आवाज सुन कर वह आ जाए या कोई उसके मातृत्व की अंतर्मन की वेदना को सुन दया कर मेमने को वापस कर जाए ।
   बहुत में..में..मे कर रही है तूँ ....बहुत ममता जाग गई है तेरी ... अभी ममता का भूत उतारती हूँ ...एक पतले सोटे से मारते हुए घसियारिन मालकिन ने बड़ी बेरुखी से कहा ।
मुनिया की तेज चीख निकल गई खूँटे से भागने की कोशिश करने लगी पर खूँटे से मजबूत रस्सी से बंधी कहाँ जाती हाँफते हुए गिर पड़ी पैर ऊपर थे आँखों में याचना थी
  कमीनी सुबह से एसे आसमान उठा रखा है जैसे इनका राज-पाट चला गया खजाना लूट गया वो मेमना नहीं जैसे बेटा था कमाँकर इनको रोटी खिलाता .....चुप रह ! फिर नौ महीने बाद दूसरा मेमना जाएगा ,जी भर चूमना चाटना ....बदमाश ! हिकारत से मुनियाँ को मालकिन कोसते हुएअपने हाथ का डांडा दूसरीओर गुस्सेसे फेंकते हुए कहा
     मुनिया ने सहमी अपनी भींगी आँखों से मालकिन को जाते देखा
शायद उसके मन में प्रश्न उठ रहे थे बहुत कुछ कहना चाहती थी ....
मालकिन तेरा बेटा तो गबरू जवान था हट्टा कट्ठा तुम्हें कमाँकर खिलाने वाला ,छोड़ कर चला गया परदेश .... कभी नहीं लौटा ,तेरी सुध भी नहीं लेता अब। फिर भी  आज तक...याद करती है 
मेरा मेमना ...तो...अभी मेरा दूध पीता था तुमने तो उसे उसे काट खाने के लिए बेच दिया दूसरे की मांस पर तेरा जीवन चल रहा है ..... हमको नसीहत देती है दूसरा मेमना पैदा हो जाएगा ....... कितना फर्क है जानवर और इंसान में
  पिछले महीने रामदेव महाजन के बेटे को पचीस लाख रुपए का ठेका मिल गया मन्नत पूरी हुई वलि चढाने का संकल्प था ।वलि के लिए काले रंग का बिना बधिया किया बकरा आज मिल गया था खोज पूरी हुई
मेमना वलि का बकरा होगा महाजन के घर बंधु बांधव जुटेंगे मिल कर उत्सव होगा
उदय वीर सिंह






रविवार, 18 फ़रवरी 2018

मतलब भी क्या चीज है

दाग पर सुनहरे वरक का खोल चढ़ा देता है -
मतलबपरस्ती की मकबूलियत तो देखिए 
वो इतना सगा नहीं जितना बता देता है 
 जिससे आपका कोई वास्ता हो 
वो रास्ता बड़ी मासूमियत से दिखा देता है -
अपने हक में फैसला आए गवाहों को 
आपना फैसला पहले ही सुना देता है -
लूट लेने को किसी बाबा भारती का घोडा 
एक अपाहिज की सूरत बना लेता है -

उदय वीर सिंह

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

दिल की जरूरत है

दिल की जरूरत है महल क्या करेंगे हम
सदियों की ख़्वाहिश दो पल क्या करेंगे हम -
आज आईने की धूल साफ कर लेनी है
कल किसने देखा है कल क्या करेंगे हम -
तेरी बाहों की कैद से रिहाई मंगुगा
नफरत की दुनियाँ में निकल क्या करेंगे हम -
पत्थर ही रहने दो इमारत के नीवों की
मोम की दीवारों में पिघल क्या करेंगे हम -
प्रीत के मुसव्विर हैं प्रीत ही सजाएँगे
प्रेम के चितेरे हैं और क्या लिखेंगे हम -
रहने दो जैसा हूँ मैं अपने ही आँगन में
मतलब के साँचों में ढल के क्या करेंगे हम -
उदय वीर सिंह 


मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

दधिच हमारे देश -

बोने वालों को प्रणाम लोकतन्त्र का बीज हमारे देश
हुए उजागर कितने सारे नीच हमारे देश ॥
रास न आता संविधान मानवता की बात
जाते बिसराए मानबिन्दु दधिच हमारे देश -
दमन द्वेष अन्याय की प्राचीरों को गिरना था
समता मूल्य प्रेम की सरिता को अविरल बहना था
ठूंठ दरख्तों पर बैठे कुछ गिद्ध निगाहें मैली ले
त्याग समर्पण तपोभूमि पर फैलाते हैं कीच-
देश- प्रेम का आडंबर है ,करते सौदा भारत का
हानि लाभ के मतावलंबी मोल लगाते तन आरत का
देश मुनाफ़ा धर्म मुनाफा भूमि मुनाफा मानस में
छोड़ गए मझधार में नैया हैं बीच हमारे देश -
उदय वीर सिंह

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

जो बोया सो काट न पाया

जो बोया सो काट पाया 
कर देकर भी मूल पाया 
कंचन की आशा थी अपनी 
हाथ में पीतल कांसा है -
कैसी जीवन की भाषा है 
पुष्प है तो अभिलाषा है 
अवधि पतझड़ की दीर्घायु हो 
कैसा बसंत जिज्ञाषा है -
अलका घन की सामग्री 
कब गिर जाए जाने कौन 
कूँची रंग मसि कलम जलेंगे 
सर्जक की घोर निराशा है -
निकलेगा चाँद ईद मनेगी 
आशा ही नहीं विश्वास प्रबल था 
नील गगन के अनंत लोक में
गहरा पसरा सन्नटा है -
पावस में ज्वाल बरसता है 
ये ऋतु परिवर्तन या अभिशाप 
किंचित अमिय अनंग संग वैर हुआ 
भर विष घट अकुलाता है -
उदय वीर सिंह