रविवार, 24 दिसंबर 2017

एक अंतहीनसी रचना ....

नयन नीर बिन मांगे पाए
झीलों में पानी बरसे
खेतों में सूनापन गहरा
मरुधर पानी मांग रहा -
वांछित शांति शांतिवन में
निर्जन सन्नाटा मांग रहा
वैभव ऐश्वर्य कुबेर नित मांगे
निर्धन संवेदन मांग रहा -
आश भरोषा मांग रही है
दीन दया का याची है
सुख यानों के आवेदन शत
दिव्यान्ग बैसाखी मांग रहा -
मांग रही आजादी काया
वसन सौन्दर्य ढ़क देते हैं
नहीं मयस्सर तन ढकने को
कोई तन पत्तों से ढाँक रहा -
पानी स्वदेश का मैला है
दूध स्वदेशी जहरीला
देश राग को गाने वाला
राग विदेशी मांग रहा -
लाचारी तन बेच रही है
सौदाई तन मोल रहे
मानव अंगों का व्यापार फूलता
दे बेबस धन मांग रहा -..
....... क्रमसः
दय वीर सिंह










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