रविवार, 26 नवंबर 2017

चाँद सूरज को भी जमीन चाहिए -

हवा पर भी पाबन्दियाँ क्यों नहीं 
दरख्तों को भी यकीन चाहिए -
वीर नारों की बुलंदियाँ तो देखो 
चाँद सूरज को भी जमीन चाहिए -
मंच सजा है तमाशबीन चाहिए
आँखें बे-नूर हैं दूरबीन चाहिए -
छिपे हुए हैं यत्र -तत्र नागलोकी
एक सपेरा और एक बीन चाहिए -
भरोषा नहीं रहा अब दिल पर
धड़कने को मशीन चाहिए -
नहीं चाहती जमीन पर चलना
नदी को धारा स्वाधीन चाहिए -
उदय वीर सिंह



कोई टिप्पणी नहीं: