कल के युग गीत मधुर
आज क्रंदन कैसे
हथकड़ी हाथ का बंधन
आज कंगन कैसे -
कल का विषबेल तरु
आज चंदन कैसे
कल का द्रोही तेरे विचारों में
आज वंदन कैसे-
कहा था पापी संस्कार रहित
आज मंडन कैसे
अक्षम्य अपराध था जिनका
आज अभिनंदन कैसे-
कल जो रेत था नयनों में
आज अंजन कैसे
कल पीतल तुम्हें नजर आया
आज कुन्दन कैसे-
उदय वीर सिंह
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