शनिवार, 17 जून 2017

दरबार भरे हैं वादों से

कौन कहता है कंगाली है खाली है बदहाली है
दरबार भरे  हैं वादों से
आँखों की ज्योति नहीं बदली चश्में सारे बदल रहे
चौबारे.विस्वास  से खाली है,,बाजार भरे उन्मादों से 
बढ़ती  समस्याएँ हनुमान की पुंछ सदिस 
अखबार भरे ,संवादों से 
हासिल है मिश्री मक्खन उनको 
मजलूम मरे.किसान.मरे अवससदों दों से ...

उदय वीर सिंह 


सोमवार, 12 जून 2017

सत्ता के गलियारे कैसे

सत्ता के गलियारे कैसे
जीवन पलड़े पर तोल रहे
संवेदनहीन सरकारें हैं
बोल घृणा के बोल रहे -
कक्ष कोष क्षेत्र रंगों में
मानव विभक्त किया जाता
सुनी राहें न्याय सत्य की
जन दंभ द्वेष में झुलस रहे -
हैं सबके रक्षक सबके पालक
हुए तेरे किसान मेरे जवान
एक राष्ट्र की शीतल बयार में
सत्ता मद विष- घोल रहे -
जीवन सत्ता का खेल नहीं
सृष्टि का अनमोल रतन है
कंचे -कौड़ी के खेल समझ
हार -जीत सम खेल रहे -
सत्ता आज किसी की है
कल और किसी की होगी
जीवन ईश्वर की सत्ता है
जीवन को जीवन रहने दो -

उदय वीर सिंह