शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

मानविंदु समर्थ योगी

जिसने योगी को समझा है
उसने जीवन को समझा है
वेदन क्या ,आँसू क्या होता है
उसने मानस मन को समझा है -
वैराग्य समर्थ का स्पंदन है
अनबोलों का क्रंदन समझा है
वनवासी वनजीवों का मीत
अभिनंदन कर वंदन समझा है -
नारी अबला का मान विंदु
मर्यादा का मर्दन समझा है -
ज्योति नयन हंसी अधरों को
बेकस का अतिरंजन समझा है -
दम तोड़ती आशाओं का
अपेक्षाओं का सुंदरतम समझा है
जनमानस को ताबेदार समझती
तानाशाही का अन्तर्मन समझा है -
उदय वीर सिंह




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