क्या दौर है शराब को,
निवाला कह रहे हैं
टकराते जहां पर जाम,
शिवाला कह रहे हैं -
हुई निलाम सरेआम
मोहब्बत की कली
बेचा जिसे बाजार में,
घरवाला कह रहे हैं -
जब्त करले मसर्रत ही नहीं
अहसासों को भी
न हो अख़्तियार खुद पर
ताला कह रहे हैं -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
वाह।
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