रविवार, 16 अप्रैल 2017

पत्थरबाजों से -

पत्थरबाजों से -
जो तेरी सलामती की निगहबानी में है
वो क्यो आज तुमसे ही परेशानी में है -
सुन बेकस खौफजदा रूहें आवाज देती है ..
हो हकीकत से दूर तूँ कितनी नादानी में है -
वतन नहीं तोड़ सकते तेरे हाथ के पत्थर
शायद तूँ किसी ख्वाब में है या कहानी में है -
ये किसी कौम या मजहब का नहीं है वतन
यहाँ फरजंद रहते हैं तूँ किसी बद्दगुमानी में है -
उदय वीर सिंह

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