शनिवार, 11 मार्च 2017

मूल्यों का अवसान नहीं हो

मूल्यों का अवसान नहीं हो
व्यतिरेक कहीं प्रतिमान हो
आदर्श कहीं अभिमान नहीं हो
धूल-धूसरित सम्मान हो -
पीड़ा के संग संवेदन सरिता
वंचित का अपमान हो
प्रत्याशा का प्रतीकार नहीं हो
सृजन कर्म व्यवधान हो
मद भेद कहीं स्थान पाए
सत्य-पथ में विश्राम हो
सहकार समन्वय गतिहीन नहीं
घर लिप्सा का निर्माण हो
सीमा-विहीन अधिकार नहीं हो
शमशीर कहीं भगवान हो
प्रेमसंजीवन अभिशप्त नहीं हो
मिथ्या विद्वेष महान न हो -
उदय वीर सिंह


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