रविवार, 19 फ़रवरी 2017

ओढ़ कर बर्फ की चादरें

ओढ़ कर बर्फ की चादरें
गर्मियां तलाशते रहे
जलाकर ख्वाब में दीपक
सर्दियाँ गुजारते रहे -
घाव ऐसे भी न थे की चल न पाएँ
मंज़िलें बुलाते रहे  -
बुज़दिली को बदनसीबी कहा
अपनी कमियाँ छुपाते रहे -
आंसुओं का सैलाब प्यास नहीं बुझाता
और हम आँसू बहाते रहे -

उदय वीर सिंह

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