उन्नयन (UNNAYANA)
मंगलवार, 3 जनवरी 2017
प्रशस्त करो नव वर्ष के नव पथ, नव सोपान..
पथ
पीड़ा
के
जागृत
होते
जा
प्रेम
के
आँगन
हँसते
हैं
अवशाद
रुदन
की
राह
न
जा
पथ
में
गिरते हैं उठते हैं
-
मन
की
हार
न
लिखनी
होगी
ऋतु
संवत्सर
आते
जाते
अखंड
दीप
की
रचना
करना
अंधड़
में
शास्वत
जलते
हैं
-
उदय
वीर
सिंह
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