रविवार, 17 जुलाई 2016

कटे हुये केशों में.. तेल चमेली लगा रहे -

नीचे घास कंटीली है
ऊपर मलमल बिछा रहे
जिस पर रोती मानवता
गौरव उसको बता रहे -
रसखानों का सून्य विवेचन
दृष्टिपटल से मिटा रहे
अवश्यंभावी परिमार्जन था
जन-मानस से छिपा रहे -
रोगों का भंडार हुआ तन
शरीर शैष्ठव बता रहे
निष्फल समस्त प्रयोजन है
तर्कों से उचा बता रहे -
अर्थ समाज भौगोलिक नैतिक
ईंट नींव की खिसक रही
लेकर के पूर्वाग्रह अंतस
महल ताश का बना रहे -
चमत्कारों के आलंबन में
ये देश सतत शत टूटा है
हठ रूढ़ि प्रलाप प्रवंचन में
काले अतीत को सजा रहे -
भूख कुपोषण दीन दैन्यता
अशिक्षा अन्याय नर्क में देश
कटे हुये केशों में ज्ञानी
तेल चमेली लगा रहे -

उदय वीर सिंह


2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-07-2016) को "सच्ची समाजसेवा" (चर्चा अंक-2407) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " दिल धड़कने दो ... " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !