मन भाग नहीं बादल के पीछे
मन भाग नहीं बादल के पीछे
घन आवारा हरजाई है -
कुछ छांव मिली तो समझ न अपना
नीचे उसकी परछाईं है -
यादों का बंधन मोह न बरसे
विच सावन आँख भर आई है -
भूला आँगन प्रीत का उपवन
मधुवन में ज्वाला पाई है -
न आओ संग विस्मृत हो जा
स्मृतियों ने वेदन जाई है
ज्योति गई नैनन से भागो
क्यों हृदय में अलख जगाई है -
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-06-2016) को "मन भाग नहीं बादल के पीछे" (चर्चा अंकः2363) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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