शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

हर रोज मेरी ईद है

गा रहे हैं गीत ए ,मेरे हमनवा नसीब है
कस्रे मोहब्बत पास है हर रोज मेरी ईद है -

गुल खिलेंगे हर डाल पर गर गुलशन रहा
भूल जाएंगे ख़िज़ाँ के वस्ल को उम्मीद है -

हम सिकंदर हुये हमसफर हैं हम कदम
फतह हमारी है लिखी गर दौर भी रकीब है -

गुरबती गर साथ है तो हौसला भी कम नहीं
डूबा सफ़ीना गम नहीं साहिल अब करीब है -

उदय वीर सिंह


1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उदात्त भाव का जीवन।