मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

त्याग आदर्शों के नारे आज भी हैं

धर्म और संस्कारों के हरकारे आज भी हैं 
त्याग आदर्शों के प्रखर  नारे आज भी हैं 
ढूंढते हैं दर -बदर एक  जिंदगी का आसरा
हमवतन हैं मुफ़लिसी के मारे आज भी हैं
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गुम है तूती की आवाज नक्कारखानों में
फासले रखने वाली दीवारें आज भी हैं 
पैगाम देना था इंसानियत हकपरस्ती का 
इंसान को बांटने वाली मीनारें आज भी हैं -
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किसी ने पूछा नहीं तारुफ़ इंसानियत का
दरख्त दरिया समंदर सारे आज भी हैं 
इंसान से इंसान कितना अजनवी हो चला
धरती आसमान और तारे आज भी हैं - 


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