शीशे जो सच दिखाते पत्थर उठाते हो
सितम जो बयां हुये तो शातिर बताते हो -
जख्मों से दर्द छलका तो शायर बताते हो
हो बेदम गिरा जमी पर कायर बताते हो -
हकपसंद हो गया तो मोहाजिर बताते हो
दहशत में है तसव्वुर नश्तर चलाते हो -
उजालों से यारी इतनी हो गयी उदय
जानिब महफिलों के बेबस का घर जलाते हो -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-02-2016) को "प्रवर बन्धु नमस्ते! बनाओ मन को कोमल" (चर्चा अंक-2266) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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