शनिवार, 29 अगस्त 2015

फूलों के नाम पर

पानी की पीठ पर बनते निशान कब
बालू की भीत पर बनते  मकान कब -
अदब है शराफत लियाकत है जिंदगी
छीना मुकाम को ,शाहे तूफान कब -
आँखों में पानी है दिल में मोहब्बत है
सहरा में जिंदगी लगती वीरान कब -
उम्मीदो -यकीन पर बसते, बसाते हैं
धरती गई है कब गया आसमान कब -
हाथों से रुखसत फूल कब हो गए हैं
पत्थर उछालते हैं फूलों  के नाम पर -

उदय वीर सिंह

3 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

बेहतरीन

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-08-2015) को "ये राखी के धागे" (चर्चा अंक-2083) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Smart Indian ने कहा…

पानी की पीठ पर बनते निशान कब
बालू की भीत पर बनते मकान कब

बहुत सुंदर!