हूँ मैं विकल विपन्न अब
निज वेदना को पांव देकर -
आनंद था ,विस्वास में था
संवेदना को छाँव देकर -
विकल्प था नैराश्य में भी
अभिव्यक्तियों को स्वर प्रखर ,
निहितार्थ स्व की याचिका में
भष्मित हुआ मैं अग्नि देकर -
दंश था न उर दंभ किंचित
आँगन सीमित संसार मेरा ,
श्वेत या श्याम,थी हमारी वेदना
स्तब्ध हूँ प्रतिदान देकर -
चैतन्य था, सन्नद्ध हरपल
अविरल रहा अविभाज्य था ,
बिखर गया हूँ मौन तजकर ,
वेदना को गाँव देकर -
उदय वीर सिंह
निज वेदना को पांव देकर -
आनंद था ,विस्वास में था
संवेदना को छाँव देकर -
विकल्प था नैराश्य में भी
अभिव्यक्तियों को स्वर प्रखर ,
निहितार्थ स्व की याचिका में
भष्मित हुआ मैं अग्नि देकर -
दंश था न उर दंभ किंचित
आँगन सीमित संसार मेरा ,
श्वेत या श्याम,थी हमारी वेदना
स्तब्ध हूँ प्रतिदान देकर -
चैतन्य था, सन्नद्ध हरपल
अविरल रहा अविभाज्य था ,
बिखर गया हूँ मौन तजकर ,
वेदना को गाँव देकर -
उदय वीर सिंह
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