शनिवार, 2 मई 2015

- जन्नती महल -

   - जन्नती महल - ( लघु कथा )
आज मजदूर दिवस पर मायूसों मजलूमों विकलांगों बेरोजगारों लाचार निर्धनों ने आम-सभा की बैठक आहूत की । एक कार्यशाला का आयोजन जिसमें गणमान्य शिक्षाविद ,तकनीकी विशेषज्ञ चिकित्सक समाजशास्त्री ,मनोचिकित्सक ही नहीं वरन पूंजीपति ,धनपति रईसों ने भी अपनी उपस्थिती दर्ज कर अपनी संवेदना अपने विचार आम- जनमानस के समक्ष रखे । बड़े आलंकारिक शब्द विन्यास ,धाराप्रवाह सरस सुबोध अनुकूलित प्रवर भाव ,मानो साम्यता ,सहृदयता की गंगा अपने अप्रतिम वेग स्वरूप को प्राप्त हो गयी हो । मधुरतम भाव में मलय समीर दग्ध उरों,विकल मानस को दानशील भाव से शीतलता प्रदान कर रहा हो । अद्द्भुत समागम ,परम स्नेही वातावरण का प्रबोध । ऐसा प्रतीत होता है मानो समस्त विकृतियों समस्याओं का समूल नाश अवश्यंभावी है । मानो निराकरन ही हो गया । विषद रूप से प्रत्येक कल्पों- विकल्पों ,क्षेत्रों- प्रक्षेत्रों का विच्छेदन ही नहीं क्रिया-प्रतिक्रिया हुई । उपसंहार में भ्रांतियाँ व अनेकता पूर्ववत निष्ठावान रहे ।
इस दमित दुर्दिन के मारे विपन्न असहाय जनों के उत्थानार्थ कुछ उत्साही जनों ने एक श्रव्य -दृश्य का प्रस्तुतीकरण किया जो विभिन्न भावों व कृत्यों का प्रतिनिधित्व कर रहा था ।
मंच पर तानाशाह का विशाल सिंहासन सुशोभीत हो रहा है । कुछ देर में उनका प्रवेश होता है ।
जयकार का उन्मादी स्वर गूँजता है , फिर सुन्यता स्थान लेती है । दरबारी झुकी मुद्रा में खड़े होते हैं
मेरी जन्नती महल के तामीर की कैफियत क्या है बयां किया जाए ।कर्कस गूँजता स्वर उभरा ।
श्रीमान ! आपके हुक्म की अदुली इस जमीं-जहां के इंसान की कुबत में नहीं है । महल बन कर तैयार है । अभी प्रवेश वर्जित है । आप की आज्ञा के मुताबिक सारे हुनरमंद कारीगरों, संगतराशों को कैद में रखा गया है । अभी उन्हें अपने वतन लौटने की इजाजत नहीं दी गयी है । जन्नती महल में प्रवेश का आगाज आप की आज्ञानुसार ही मुमकिन है । सुगंधित इत्र ,और जल से महल के फर्स धोकर साफ कर दिये गए हैं । जर्रे की भी हिम्मत वहाँ से होकर जाने की नहीं रही । सीसे की माफिक महल बेमिशाल कयामती हूश्न में आप की प्रतीक्षा में है । प्रधान सेवक श्री शाहबाली ने झुकी नजरों से जन्नती महल के बारे में बताया ।
शाहबाली जी मुझे खुशी हुई ! पहली और अंतिम जन्नती महल के बारे सुनकर । कर्कस स्वर में ताना शाह ने सामने देख संबोधित किया ।
जयघोष में समवेत स्वर उभरे ।
फिर खामोशी छा गयी । शमशान की तरह ।
तानाशाह उठ कर चला जाता है । क्रमसः दरबारी भी प्रस्थान कर जाते हैं ।
दूसरे दिन दरबार सजता है , तख्ते-शान पर तनाशाह काबिज होता है । दरबारी जय घोष में उसकी जैकार करते हैं । पुनः खामोशी छा जाती है ।
जन्नती महल के हालिया किस्से बयां किए जाएँ । तानाशाह की बर्बर आवाज गूंजी ।
जहाँपनाह आपके हुक्म की तामीर हो गई । आप का शुक्र है ।
जन्नती महल के नक्से को बनाने वाले का सिर कलम कर दिया गया ।
बहुत खूब । तानाशाह ने शाबाशी दी ।
जन्नती महल के कारीगरों के हाथ काट लिए गए हैं । शाहबाली ने जोश में भर कहा ।
क्या बात है । ताली बजाते हुये तानाशाह ने कहा ।
समवेत दरबारी तालियाँ बज उठीं ।
जिस कारीगर ने शयन कक्ष व हम्माम को बनाया व तराशा उसकी आंखे निकाल ली गईं हैं शाहबाली ने उदद्घोष किया ।
बहुत अच्छा ....बहुत अच्छा । तानाशाह ने खुश हो कर बोला ।
जन्नती महल की खूबसूरती कामगार कहीं बयां न कर सकें ,जुबान जुदा कर दी गयी है ।
शाबाश ! शाहबाली जी ! आप तो अच्छी और माकूल खबर देने में माहिर हैं कहीं उम्मीदों से जियादा
शुक्रिया मेरे आका । अदब से झुक कर शाहबाली ने खुशी जाहीर की ।
जहाँपनाह ! कारीगरों, मजदूरों की बसाई बस्तियों को जन्नती महल की शान में ज़मींदोज़ कर दिया गया है । उनकी वजह से महल की रौनक कम हो रही थी ।
क्या बात है ! क्या बात है ! शाहों के बीच रह कर आप का अंदाज शाही हो गया ,शाहबाली जी । तानाशाह ने सराहा ।
कल जन्नती महल में प्रवेश के मसले होंगे । कह कर तानाशाह उठ खड़ा हुआ ।
जय घोष कर दरबारी तानशाह के बाद रुखसत हुये ।
दरबार फिर सजा तानाशाह सिंहासन पर विराजमान हुआ । दरबार की कार्यवाही शुरू करने का तानाशाह का हुक्म हुआ।
शहंशाह आपकी निजामत में रिआया बहुत खुशो शकुन में है । बेइंतहा टैक्स देकर खजाने को मालामाल कर दिया । खुद भूखी रही खिराज दिया । बगैर मजदूरी श्रमदान किया । जन्नती महल के लिए अपना खून पसीना बहाया । बहुत फ़रमोश है रिआया । शाहबाली ने कहा ।
क्या बात है .... क्या बात है ! तानाशाह ने ऊंचे स्वर में हाथ उठा कर बोला ।
अगली वार को जन्नती महल में जश्न होगा । इससे पहले मेरी ख़्वाहिश है की शाहबाली जी को गिरफ्तार कर सजाये मौत दी जाए । सुरक्षा कर्मियों की तरफ इशारा कर तानाशाह ने कहा ।
क्यों की इनकी निजामत में फिर कोई जन्नती महल तामीर न हो । जिससे मेरी तौहीन हो ।
आवाम आवाक , मजबूर थी तालियाँ बजाने के लिए ।
मजदूर दिवस पर जन्नती महल का मंचन समाप्त हो गया था । फिर अगले मजदूर दिवस के मंचन निहितार्थ । समस्त विद्वतजन पंडाल छोड़ अपने सुरक्षाकर्मियों के सायों में अपने वाहनों की ओर जा ने लगे थे ।
उदय वीर सिंह    


  

कोई टिप्पणी नहीं: