कारवां गुजारा है पूछता है गुब्बारो गर्द क्या है
शिगाफों से झाँकते जख्म पूछते हैं दर्द क्या है -
किसको नहीं मालूम कि जमाने का मर्ज क्या है
कितनी संजीदगी से हम भुला बैठे फर्ज क्या है -
उल्टी सतर पढ़ रहे हैं दस्तावेज़ में दर्ज क्या है
तुम जमीं हो नहम आसमां मिलनेमें हर्ज क्या है -
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-03-2015) को "नीड़ का निर्माण फिर-फिर..." (चर्चा अंक - 1916) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने.बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति
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