बुधवार, 4 मार्च 2015

संग हूँ साहिल का

खुशनसीबी है वक्त की या ,मैं खुशनसीब  हूँ
उदय हूँ मैं सुखनवर, किसी का रकीब हूँ -

ओढ़ कर चाँदनी की चिट्टी शाल तारों टंके बूटे
गमजदा ने भी कहा मैं उसके कितना करीब हूँ -

नाव की खुशफहमियों पर, जीता है बुलबुला
संग हूँ साहिल का मौजों का कितना अजीज हूँ -

गुस्ताखियों को मुआफ ही नहीं दुआ मांगा
मेरे पास वो दिल है ,क्या हुआ जो गरीब हूँ -

उदय वीर सिंह 

      

2 टिप्‍पणियां:

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-3-2015 को चर्चा मंच पर हम कहाँ जा रहे हैं { चर्चा - 1908 } पर दिया जाएगा
धन्यवाद

Anil Sahu ने कहा…

ब्लॉग अच्छा लगा.
होली की शुभकामनायें.