बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

निर्वाण पथ पर -

छोड़ता हूँ गंतव्य तुम पर
तुम मिलो या न मिलो
मुक्त हुए अब पग हमारे 
मैं निरंतर प्रयाण पथ पर -
संकल्प मेरा दे सकेगा ,
उर्मियों का कुम्भ अक्षय
लक्ष्य का सज्ञान भी है
संधान भी निर्माण पथ पर -
अक्षित रहा न तेज वैभव
कब चुका मैं वीथियों से
कुल कलश के आम्र पर्ण
सिंच देंगे निर्वाण पथ पर -
स्वप्न में सन्यास कब
वलिदान का प्रतिदर्श हूँ
विच्छेदित हो शीश धड़ से
तो गिरे कल्याण पथ पर -
उदय वीर सिंह







कोई टिप्पणी नहीं: