न रहूँ किसी के लबों का सवाल बनकर
अच्छा है जलूँ तो कहीं, मशाल बनकर -
अच्छा है जलूँ तो कहीं, मशाल बनकर -
नागफनी सींचने से अच्छा है, बांझ होना
किसी गुलशन का रहूँ गुल गुलाब बनकर -
किसी गुलशन का रहूँ गुल गुलाब बनकर -
बेकस की मजबूरियाँ मुझे, बेदाग कर दें
अच्छा है जीउ जमाने में कहीं दाग बनकर-
अच्छा है जीउ जमाने में कहीं दाग बनकर-
फटे दामन का पैबंद बनना गवारा है मुझे,
लानत है रहना सिर पर खूनी ताज बनकर-
लानत है रहना सिर पर खूनी ताज बनकर-
यूं तो जानवर भी बोलते हैं गर्दिशी में उदय
जरूरत है जीना मजलूम की आवाज बनकर -
जरूरत है जीना मजलूम की आवाज बनकर -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-12-2014) को "धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है" (चर्चा-1827) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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