शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

न रहूँ किसी के लबों .....



न रहूँ किसी के लबों का सवाल बनकर
अच्छा है जलूँ तो कहीं, मशाल बनकर -

नागफनी सींचने से अच्छा है, बांझ होना
किसी गुलशन का रहूँ गुल गुलाब बनकर -

बेकस की मजबूरियाँ मुझे, बेदाग कर दें
अच्छा है जीउ जमाने में कहीं दाग बनकर-

फटे दामन का पैबंद बनना गवारा है मुझे,
लानत है रहना सिर पर खूनी ताज बनकर-

यूं तो जानवर भी बोलते हैं गर्दिशी में उदय
जरूरत है जीना मजलूम की आवाज बनकर -
उदय वीर सिंह

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-12-2014) को "धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है" (चर्चा-1827) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'