शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

आदि गुरु नानक देव जी [ THE PATH ]


आदि गुरु नानक देव जी [ THE PATH ]
हम मैले तुम उज्जल करते .......                                                                                           
." सतगुरु नानक परगटिया मिटी धुंध जग चानड़ होया "
मिती कार्तिक पूर्णिमा,सुदी 1526 [A .D .1469 ] ननकाना साहिब [ तलवंडी -राय भोई ] लाहौर से दक्षिण -पश्चिम लगभग चालीस किलोमीटर दूर [अब पाकिस्तान में ]परमात्मा की समर्थ ज्योति का उत्सर्ग | पिता ,कालू राम मेहता और माँ, त्रिपता की पवित्र कोख से जग तारणहार बाबे नानक का देहधारी स्वरुप आकार पाता है | 
पूरी मानव जाति इस समय वैचारिक तमस के आगोश में ,भ्रम की अकल्पनीय स्थिति बिलबिलाती मानव प्रजाति ,कही कोई सहकार नहीं ,किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं, धार्मिक आर्थिक सामाजिक सोच नितांत कुंठा में डूबी, अलोप होने के कगार पर, विस्वसनीयता का बिराट संकट ,दम तोड़ती मान्यताओं की सांसें ,जीवन से जीवन की उपेक्षा ,दैन्यता की पराकाष्ठा, दुर्दिन का चरम ,यही समय था जब परमात्मा ने देव - दूत को भारत- भूमि पर उद्धारकर्ता के रूप में आदि गुरु नानक देव जी को पठाया | इस पावन- पर्व पर परमात्मा के प्रति कृतज्ञता व आभार, साथ ही समस्त मानव जाति को सच्चे हृदय से बधाईयां व शुभकामनाये देता हूँ |
बाबे नानक का मूल- दर्शन --आडम्बरों से दूर होना
-मनुष्यता की एक जाति
-विनयशीलता व आग्रही होना
-पूर्वाग्रहहीनता |
-एकेश्वरबाद का स्वरुप ही स्वीकार्य
-जीवन के प्रर्ति उदारता, दया, क्षमा
-कर्म की प्रधानता एक अनिवार्य सूत्र
-ज्ञान और शक्ति का बराबर का संतुलन
- निष्ठां संकल्प और कार्यान्वयन
-जीवन की आशावादिता
आत्मा की मुक्ति का स्रोत परमात्मा की अनन्य भक्ति
-आचरण और आत्म शुचिता का सर्वोच्च प्राप्त करना
-ईश्वर में अगाध आस्था |
आदि गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को पाने ,पहचानने का माध्यम गुरु को बताया ,
" भुलण अंदरों सभको,अभुल गुरु करतार "
और
" हरि गुरु दाता राम गुपाला "

बाबा नानक का कथन , समर्पण और विस्वसनीयता के प्रति सुस्पष्ट है -
"गुरु पसादि परम पद पाया ,नानक कहै विचारा "
बाबा नानक परमात्मा को इस रूप -
"एक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभउ निरवैर अकाल मूरति अजुनी सैभंगुर परसादि " 
में ढाल कर समस्त वाद -विवाद को ही जड़ से समाप्त करते हैं ,और यही शलोक सिखी का मूल मंत्र बन जाता है |
बिना किसी की आलोचना , संदर्भ या विकारों को उद्धृत किये बाबा नानक समूची मानवता को प्रेम का सन्देश देते हैं कहते हैं -
माधो , हम ऐसे तुम ऐसो तुम वैसा |
हम पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां
हम मूरख तुम चतुर सियाने ,सरब कला का दाता ....माधो . |
जीवन की मधुरता ,सात्विकता और रचनाशीलता में है । , बाबा कैद में भी और अपनी उदासियों [यात्राओं]में भी ,निर्विकार भाव से अहर्निश प्रेम व सत्य को जीता है ....उसे परमात्मा की ओट पर पूरा विस्वास है ,-
"साजनडा मेरा साजनड़ा निकट खलोया मेरा साजनड़ा " |
बसुधैव कुटुम्बकम कि वकालत करते हुए बाबा जी ने अन्वेषण ,अनुसन्धान को कभी रोका न नहीं ,मिथकों को तोड़ स्वयं भी देश से बाहर गए और उनके सिख विश्व के प्रत्येक भाग में उनकी प्रेरणा से यश व वैभव सम्पदा से सुसज्जित हैं . | ज्ञानार्जन को सिमित या कुंठित नहीं किया . |
समाजवाद का बीज बाबा नानक ही बोता है ,कर्म कि रोटी को दूध कि रोटी साबित करता है -
" किरत करो बंड के छको ". |
आदि गुरु मानव -मात्र कि सेवा मे स्वयं को निंमज्जित करते हैं , सर्व प्रथम मानव मात्र के लिए भला चाहते हैं ,बाद में अपना स्थान रखते है -
" नानक नाम चढ़दी कलां ,तेरे भाणे सर्बत दा भला "अंत में लख -लख बधाईयों के साथ -
मुंतजिर हैं तेरी निगाह के दाते ,
इस जन्म ही नहीं हजार जन्मों तक ।

उदय वीर सिंह

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