राम रावण जा चुके हैं
दशहरा हो गया है -
दिल आबाद था वादियों में
सहरा हो गया है -
कान इंसानियत का
बहरा हो गया है -
देख ले जख्म दिल का
और गहरा हो गया है -
भर रहा था रफ्ता - रफ्ता
तुम्हें देख हरा हो गया है-
- उदय वीर सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें