मैं खुश हूँ इंसानियत की पनाह
तुम खुदा होके देखो -
दर्द क्या होता है दिल लगाने का
तुम जुदा होके देखो -
फितरत है महबूब की लूटने की
तुम फिदा होके देखो -
ताबिंदा सितारे छुप नहीं सकते
तुम गुमशुदा होके देखो -
बदलते हालात मुक्तसर, होते फासले
गम में गमजदा होके देखो -
किसी मजलूम की चाहत क्या है
उसकी इल्तजा होके देखो -
नासूर का दर्द कितना होता है ,
तुम दवा होके देखो -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (13-10-2014) को "स्वप्निल गणित" (चर्चा मंच:1765) (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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