मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

राम की प्रीत में-



राम   बिना  कैसा  जीवन
चाहे  तुलसी  या कबीर के -
जीवन अर्थ सरल बनता है
प्रेम  पयोधि  शुचि  नीर से-

बहती  है  रसधार  राम  की
काशी काबा हर कण कण में
सोचा   जिसने   वैसा   पाया
मन - मंदिर  या  तस्वीर  में-

मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों को
प्राचीरों  में  क्यों  बांध  दिया
बिन   राम  ये   सारे  सूने  हैं
दिन  बिसरे  राम  की प्रीत में-

                           - उदय वीर सिंह

                        




2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

रामनवमी शुभ हो । सुंदर शब्द ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

राम हृदय बन जाते हैं, जब सुख आता है।