फुट गया घड़ा जो संभाल कर रखा था
कौड़ियां निकलीं रत्नों का भ्रम टूट निकला-
फूलों का गुलदस्ता सलामत रहे कब तक
रखा सीसे के जार में फिर भी सूख निकला-
कितना था पुराना मानदंड वो झूठ निकला
बैठा है सिर पकड़ अपना बेटा कपूत निकला
कौड़ियां निकलीं रत्नों का भ्रम टूट निकला-
फूलों का गुलदस्ता सलामत रहे कब तक
रखा सीसे के जार में फिर भी सूख निकला-
कितना था पुराना मानदंड वो झूठ निकला
बैठा है सिर पकड़ अपना बेटा कपूत निकला
तपा रहे थे गहन संस्कारों की आग में कबसे
प्यारी बेटी का कदम भी अबूझ निकला -
सींचता रहा सुबहो शाम हसरतें पूरी होंगीं
प्लास्टिक जड़े पातों वाला पेड़ ठूँठ निकला-
प्यासा मरा चुल्लू भर पानी न मिला माँगा
पानी के नाम सागर भी यमदूत निकला -
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
गहरे भावों को प्रस्तुत करती सुंदर रचना।।।
एक टिप्पणी भेजें