बुधवार, 2 अप्रैल 2014

सलीबों पे आदमी है -


उजालों में आशियाँ है  
अंधेरों  में आदमी है -

आजाद  हैं  परिंदे
बंदिशों में आदमी है - 

अब बस्तियां हैं खाली
सलीबों पे आदमी है -

पहचानता है सबको 
सिर्फ अनजान आदमी है -

ले काँटों की सरपरस्ती 
बेजुबान आदमी है -

                          - उदय वीर सिंह 

2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

आदमी ही तो है ना काहे हल्ला मचा रहे हैं :)

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

आदमी ही तो है ना काहे हल्ला मचा रहे हैं ?