गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

उस आँचल को कहता मैला है -


किस  जीवन   की   बात  करूँ 

सिर्फ  विषधर  नहीं  विषैला है- 
पिया दूध  जिस   आँचल  का 
उस आँचल को कहता मैला है -

कलम की स्याही  कम  न  हुई
वो   बेचा  खून   भरने  के  लिए 
बैठा  है  अपाहिज निचली सीढ़ी
कुछ पाने  की  आश  अकेला  है -

दुनिया  से   पसारा  था  आँचल 
जब  बेटे  की  फ़ीस  चुकानी थी 
अब जीवन की निष्ठुर संध्या में 
कर  याचन  का  बेबस   फैला है -

थे कर   में  चुभे  तकुए  कितने 
पर  गति  चरखे की कम न हुई 
दिया   निवाला   भूखे  रह  कर 
माँ विस्मृत स्मृतियों में लैला है - 

                          उदय वीर सिंह 




5 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.02.2014) को " सर्दी गयी वसंत आया (चर्चा -1515)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।

Neetu Singhal ने कहा…

गा गा कहता रे पढन, भेजो पुत परधाम ।
ऐसो भेजणु लाह का, आवै ना कछु काम ।११०३।

भावार्थ : -- बावरा बखान करता फिरे, रे पुत को पराए धाम पढन भेजो है, ऐसो भेजनों का क्या लाभ जो किसी के काम नहीं आवे..... न आपने, न गाम के, न देस के ॥

Neetu Singhal ने कहा…

गा गा कहता रे पढन, भेजो पुत परधाम ।
ऐसो भेजणु लाह का, आवै ना कछु काम ।११०३।
------ ॥ अज्ञात ॥ -----

भावार्थ : -- बावरा बखान करता फिरे, रे पुत को पराए प्रबास पढन भेजो है, ऐसो भेजनों का क्या लाभ जो किसी के काम नहीं आवे..... न आपने, न गाम के, न देस के ॥

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अजब तमाशा है दुनिया यह

Asha Joglekar ने कहा…

जमाना ही खराब है।