जो बसा रग- रग में मेरे ,वो मेरा अपना वतन है
जन्म से है आशियाना ,मौत पर मेरा कफ़न है -
जन्म से है आशियाना ,मौत पर मेरा कफ़न है -
पी गरल आशीष देता ,हिय सरल सोने सा मन है
स्वर्ग सा है क्षितिज पावन,श्रेष्ठतम निर्मल गगन है -
उनको भी चाहा , जो न चाहा ,आग बोया अंक में
बन के सावन टूट बरसा मेरे वतन शत शत नमन है -
हर जनम में गोंद तेरी बन के आश्रय मम मिले
कर सकूँ मैं शीश अर्पण चरणों में तेरे फिर भी कम है -
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आपका हृदय देशप्रेम से सदा ही यूँ प्लावित रहे। सुन्दर पंक्तियाँ
अपनी माटी की कद्र देश से दूर जाकर ही होती है.
विदेश के गुदगुदे गद्दों पर सोते हुए सपने अपने देश के ही आते हैं.
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