मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

अपना वतन है

जो बसा  रग- रग में मेरे ,वो  मेरा अपना वतन है
जन्म  से  है आशियाना ,मौत  पर  मेरा  कफ़न है -

पी गरल आशीष देता ,हिय  सरल  सोने  सा मन है
स्वर्ग सा है क्षितिज पावन,श्रेष्ठतम निर्मल गगन है -

उनको  भी  चाहा , जो न चाहा ,आग बोया अंक में
बन के सावन टूट बरसा मेरे वतन शत शत नमन है -

हर जनम में गोंद तेरी बन के आश्रय मम मिले 
कर सकूँ मैं शीश अर्पण चरणों में तेरे फिर भी कम है -



- उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपका हृदय देशप्रेम से सदा ही यूँ प्लावित रहे। सुन्दर पंक्तियाँ

मन के - मनके ने कहा…

अपनी माटी की कद्र देश से दूर जाकर ही होती है.
विदेश के गुदगुदे गद्दों पर सोते हुए सपने अपने देश के ही आते हैं.