मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

उत्सर्ग- यथेष्ट



प्रतिकूल  प्रवाह  का  गामी  ही 
गिरि , हिमशिखर  को पाता है- 
जीवन   का    उत्सर्ग      यथेष्ट 
पुनः     जीवन    पनपाता     है -

जो   टूट   गया   वह   भंगुर   है 
नीर - क्षीर   न  भंगुर  होता  है-
सागर में,  कलश में, काया   में
वांछित    स्वरुप   धर   लेता है-   

मूल्यों का उत्सर्ग अतिरंजन है 
अतिवेदन तो विष -पथ देता है- 
जीवन की शाम कोई शाम नहीं
मिट नवल - प्रभात,यश देता है -

कर  यत्न  विषमता  सरल  बने
पद - चिन्ह प्रताप बन  जाता है-
वो  अपराध  हमेशा  किया करो
जो मानव  को  प्यार दे जाता है -



                                        - उदय वीर सिंह