प्रतिकूल प्रवाह का गामी ही
गिरि , हिमशिखर को पाता है-
जीवन का उत्सर्ग यथेष्ट
पुनः जीवन पनपाता है -
जो टूट गया वह भंगुर है
नीर - क्षीर न भंगुर होता है-
सागर में, कलश में, काया में
वांछित स्वरुप धर लेता है-
मूल्यों का उत्सर्ग अतिरंजन है
अतिवेदन तो विष -पथ देता है-
जीवन की शाम कोई शाम नहीं
मिट नवल - प्रभात,यश देता है -
कर यत्न विषमता सरल बने
पद - चिन्ह प्रताप बन जाता है-
वो अपराध हमेशा किया करो
जो मानव को प्यार दे जाता है -
- उदय वीर सिंह
गिरि , हिमशिखर को पाता है-
जीवन का उत्सर्ग यथेष्ट
पुनः जीवन पनपाता है -
जो टूट गया वह भंगुर है
नीर - क्षीर न भंगुर होता है-
सागर में, कलश में, काया में
वांछित स्वरुप धर लेता है-
अतिवेदन तो विष -पथ देता है-
जीवन की शाम कोई शाम नहीं
मिट नवल - प्रभात,यश देता है -
कर यत्न विषमता सरल बने
पद - चिन्ह प्रताप बन जाता है-
वो अपराध हमेशा किया करो
जो मानव को प्यार दे जाता है -
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
यथासंभव आरोह, कर्तव्य पथ पर।
सुदृढ़ सुन्दर भाव …।
वाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
इसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं
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