रविवार, 15 दिसंबर 2013

इबादत की बात करता है-

नीचे  पैरों  के  जमीं  नहीं  वो 
असमां   की   बात   करता है 
न  वास्ता रस्मों -रिवाज  का 
रहनुमा   की   बात  करता है -

अपनी    जेब   में    रखता  है   

चाँद   सूरज   सितारे तोड़कर 
जो  देखा   नहीं  अपना चेहरा 
हिन्दुस्तां  की  बात  करता है - 

न   जाना  मिजाज शोलों  का 

जलाने    की   बात  करता  है 
रखता  है   फासले    हाथों   में 
वो  मुकद्दर की  बात करता है -

मजहब   क्या   है   इंसान  का 

नहीं  मालूम , बांटता  है  दिल  
पहचान  नहीं  एक  हर्फ़ से भी 
वो किताबों  की बात करता है -

उजली  कमीज छोड़ा नहीं घर 

पीता रहासिगार सियासत का  
जो गवाह है शहीदों के खिलाफ
शहादत   की   बात   करता  है -

घोंटता है गला, इंसानियत का 

वो  शराफत की बात करता है-    
न झुका सिर,माँ-बाप के अदब 
वो  इबादत  की बात करता है-

                         -  उदय वीर सिंह