उसके नोचे गए बदन की पड़ताल में
दूरबीन लगाता है,
बहसी घूमता है सरेआम,
ये क़ानून तलाशता है -
**
लिखता हूँ इन्कलाब ,
बेअदब हो जाती है कलम ,
मुर्दों का शहर किसको जगा रहे हो -
**
तेरी मेंहरबानियों का मुझे गिला है ,
गर न होतीं तो मुझे रास्ता मिल गया होता -
**
जज्बातों के घरौंदे टूट जाते हैं अक्सर
पत्थरों को जज्बात देके क्या करोगे-
**
- उदय वीर सिंह .
दूरबीन लगाता है,
बहसी घूमता है सरेआम,
ये क़ानून तलाशता है -
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लिखता हूँ इन्कलाब ,
बेअदब हो जाती है कलम ,
मुर्दों का शहर किसको जगा रहे हो -
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तेरी मेंहरबानियों का मुझे गिला है ,
गर न होतीं तो मुझे रास्ता मिल गया होता -
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जज्बातों के घरौंदे टूट जाते हैं अक्सर
पत्थरों को जज्बात देके क्या करोगे-
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- उदय वीर सिंह .
3 टिप्पणियां:
बहुत खूब...
बहुत सुंदर सच्ची प्रस्तुति।
भावो का सुन्दर समायोजन......
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