मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

तेरा क्या जाता है -

तेरा क्या जाता है -
खेत हमारा अपना है
हम बोयें आलू  या  अफीम -
तेरा क्या जाता है -
अपने कुत्तों को रोटी 
ताज से मंगवा लेंगे-
गाय तो माता है उसको
 ब्रत    रखवा    लेंगे-
नागफनी हम बोयेंगे, न बोयेंगे बरसीम -
तेरा क्या जाता है-
देश  हमारा   अपना है
पैर   पसारे   सोना   है - 
ये  सोने    की   मुर्गी है 
इससे तो सिर्फ लेना है- 

शिकारी बने पाक या चीन 
तेरा क्या जाता है -
ताज   हमारा    तख़्त 
हमारा     क्यों   भूला-
राजा   तो    राजा  है,
चाहे  हो लंगड़ा- लूला-
राजतंत्र या लोकतंत्र  होंगे मेरे अधीन -
तेरा क्या जाता है -
आंसू   की  दरिया  होगी 
आंसू   का  सागर   होगा -
किश्ती पतवार नहीं होंगे
ना    कोई  माझी    होगा -
पीकर आंसू डूब मरेंगे जलीय जंतु व मीन-
तेरा क्या जाता है -

                                      - उदय वीर सिंह



6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बेहतरीन समसामयिक रचना |

मेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)

Unknown ने कहा…

ब्लॉग"दीप" में 500 ब्लोग्स

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (01-10-2013) मंगलवारीय चर्चा 1400 --एक सुखद यादगार में "मयंक का कोना" पर भी है!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, धमाके दार..

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

क्या बात भई तेरा क्या जाता है

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत ही करारा और सामयिक रचना !
नवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
नई पोस्ट साधू या शैतान