जो दीपों के स्वर होते
तो अपनी पीड़ा वे कह लेते -
जितनी लौ उतनी शोभा
जितनी ज्वाला उतना प्रकाश-
दग्ध ह्रदय सहता जलता
मानव मन पाता उजास-
जग की रीत जला कर देखो
जलता देख हर्षित होते -
मंदिर वो मस्जिद में जला
घर आँगन , उपवन में जला
मद- बसंत पतझड़ में जला
ग्रीष्म, शरद सावन में जला-
कुछ दर्द पवन ने लेना चाहा
एक भीत कवच सी रच देते -
शिक्षालय मदिरालय में जला
देवालय वेश्यालय में जला-
सवर्ण कुटीर महलों में जला
झुग्गी में अनाथालय में जला-
चुप चाप जले हर शाम जले
संवेदनहीन जन क्या देते -
मन मयूर जब नृत्य करे
जलती ढिंग दीपों की माला
जलता हृदय अभिनन्दन थाल
जब जले दीप सजती शाला-
कौन अंतस की आह सुने
जो दो बोल प्रेम के गढ़ देते -
- उदय वीर सिंह
तो अपनी पीड़ा वे कह लेते -
जितनी लौ उतनी शोभा
जितनी ज्वाला उतना प्रकाश-
दग्ध ह्रदय सहता जलता
मानव मन पाता उजास-
जग की रीत जला कर देखो
जलता देख हर्षित होते -
मंदिर वो मस्जिद में जला
घर आँगन , उपवन में जला
मद- बसंत पतझड़ में जला
ग्रीष्म, शरद सावन में जला-
कुछ दर्द पवन ने लेना चाहा
एक भीत कवच सी रच देते -
शिक्षालय मदिरालय में जला
देवालय वेश्यालय में जला-
सवर्ण कुटीर महलों में जला
झुग्गी में अनाथालय में जला-
चुप चाप जले हर शाम जले
संवेदनहीन जन क्या देते -
मन मयूर जब नृत्य करे
जलती ढिंग दीपों की माला
जलता हृदय अभिनन्दन थाल
जब जले दीप सजती शाला-
कौन अंतस की आह सुने
जो दो बोल प्रेम के गढ़ देते -
- उदय वीर सिंह