सोमवार, 26 अगस्त 2013

बदला तो क्या बदला मेरे देश !..







बदला   तो   क्या   बदला ,  मेरे  देश 
न सवाली  बदला   न  सवाल  बदला -
खड़ा है आज भी चौराहे पर लिए बोझ
लाश  बदली न विक्रम बैताल बदला-

हुकूमत    बदली  , निज़ाम    बदला
तख़्त  बदला ,सारा  इंतजाम  बदला
लालकिले की  प्राचीर   से जज्बाती
सरेआम   हुकुमती   फरमान  बदला-

बदला तो और भी बहुत कुछ मितरां 
खबर   आई   की   हिंदुस्तान बदला  -

न खेत  बदला  न  खलिहान  बदला
न धरती  बदली न आसमान बदला -
उम्मीदों पर जी    रहा  था कल  जो 
आज  भी  मजदूर न किसान बदला -

बदला तो और भी  बहुत  कुछ मितरां 
खबर   आई   की  हिंदुस्तान   बदला  -

नंगा तन ,हाथ फैलाये भूख सडकों पर
सूनी  निगाहें  बेचने  को  तन , ईमान
पेड़ों की छाँव में बितता लाचार जीवन
क्या फर्क उन्हें जानवर कहें या इनसान -

रोज खोदते रहे कुंवां  बुझाते रहे प्यास 
उनकी न शाम बदली न बिहान बदला -

बदला  तो और भी बहुत  कुछ मितरां 
खबर आई  की  हिंदुस्तान बदला  -

हम   आजाद   हैं तख्तियां  सीने  पर
हाथों में तिरंगा लगा की इन्सान बदला
मुद्दतों से खड़ी अभिशप्त  दीवारें टूटेंगी
आश जागी, देश का  संविधान  बदला -

 रहे मुगालते में अब  किस्मत बदलेगी
बदला पर नुमायिन्दों का बयान बदला

बदला  तो और भी बहुत  कुछ  मितरां 
खबर  आई   की   हिंदुस्तान   बदला  -

आज  भी  मुकद्दर लिखता है दलाल
किसान के गले फांसी, आढ़तिया के हार
न हुयी पैदावार तो  भूखा सो    लेता है
हुई  तो भी अभिशप्त ,नहीं हैं खरीददार-

लोग भूखे मरते रहे सड़ गया अन्न 
मुनाफ़ाखोर बदले न उनका मुकाम बदला -

बदला  तो  और   भी   बहुत  कुछ
खबर आई   की   हिंदुस्तान   बदला  -

बेच कर पत्ते मिटाती थी भूख बच्चों की
मासूम जगाता है  उठ अब मत सो मां -
माँ तो  हो गयी अभिशप्त जीवन से मुक्त
पूछता सवाल,बताओ क्यों रूठी है   मां -

अभिशप्त जीवन का दंश झेलता हिंदुस्तान
बदल गयी दुकान  पर न सामान बदला -

बदला  तो  और   भी   बहुत  कुछ
खबर आई   की   हिंदुस्तान   बदला  -


                                               -  उदय वीर सिंह 

3 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

सच है, मानसिकता नहीं बदली तो कुछ नहीं बदला।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपकी पंक्तियों ने आँख नम कर दी, प्रणाम।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह !!! बहुत सुंदर रचना,,,क्या बात है

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