रविवार, 18 अगस्त 2013

देश ! कुछ बोल...

ओ मेरे
बीमार, कृशकाय
विकृतियों की
बेड़ियों में जकड़े
देश !
कुछ बोल
आँखें खोल,
नहीं  है 
मौन तेरी नियति ,
जड़ता तेरी स्वीकृति नहीं।
तुमने कोई सपथ नहीं खायी
गांडीव न उठाने की
कोई भीष्म प्रतिज्ञा  नहीं की
चुप रहने की.।
न ही है कोई लक्षमन रेखा  की  बाध्यता ।
संक्रमण को दूर,
आघात का  प्रतिकार  कर,
जनित कर प्रतिरोधक क्षमता 
आत्म बल 
जाग्रत कर कुण्डलिनी को.……. 
संजीवनी हिमालय से नहीं ,मैदान से 
निकाल
सरिता की धार 
तोड़ पत्थरों की दिवार। 
छीन अमृत कलश 
दैत्यों से ,
आवश्यक है 
तेरा अमर होना ,
तू रुग्ण नहीं ,
आरोग्य ,
रौद्र बन   । 

                                   उदय वीर सिंह 

   




5 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

छीन अमृत कलश
दैत्यों से ,
आवश्यक है
तेरा अमर होना ,
तू रुग्ण नहीं ,
आरोग्य ,
रौद्र बन ।

सुन्दर सबल आवाहन!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

आवश्यक है
तेरा अमर होना ,
तू रुग्ण नहीं ,
आरोग्य ,
रौद्र बन ।

सुंदर सृजन लाजबाब प्रस्तुति,,,
RECENT POST : सुलझाया नही जाता.

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर आह्वान
atest post नए मेहमान

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हृद की पीड़ा खोल,
ओ देश मेरे, कुछ बोल।