ये बात अक्सर होगी -
हाजिरी , गैरहाजिरी से बदतर होगी
जुबान शहद नहीं खारो नश्तर होगी -
बदलने का जज्बा था ज़माने को
कौन बदला न कहें तो गल बेहतर होगी-
टूटे तारे का दर्द कभी महसूस तो करो
कोई गंगा उसे कभी मयस्सर होगी -
पीर ,उफनाई नदी सी उफान पर है
कभी दूरी किनारों की, मुक्तसर होगी -
तीरगी में रौशनचिराग बुझने को है
किसी तूफान की उस पर नजर होगी -
छोड़े तख्तोताज सिकंदर को भी एक दिन
मितरां ज़माने में ये बात अक्सर होगी -
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए शुक्रिया!
बहुत सुन्दर गजल.....
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