रविवार, 21 जुलाई 2013

ये बात अक्सर होगी -





ये बात अक्सर  होगी -


हाजिरी , गैरहाजिरी   से  बदतर  होगी 
जुबान शहद  नहीं  खारो  नश्तर  होगी -

बदलने   का   जज्बा    था  ज़माने  को 

कौन बदला न  कहें तो गल बेहतर होगी-

टूटे  तारे  का दर्द  कभी महसूस तो करो 

कोई गंगा  उसे  कभी   मयस्सर होगी -

पीर  ,उफनाई   नदी  सी  उफान पर है 

कभी दूरी  किनारों  की,  मुक्तसर होगी -

तीरगी  में   रौशनचिराग  बुझने को है 

किसी  तूफान  की  उस पर नजर होगी -

छोड़े तख्तोताज सिकंदर को भी एक दिन

मितरां  ज़माने  में ये बात अक्सर  होगी -

                                  - उदय वीर सिंह   

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए शुक्रिया!

के. सी. मईड़ा ने कहा…

बहुत सुन्दर गजल.....