मंगलवार, 7 मई 2013

मुझे मालूम है ....


घुंघरुओं से नवाजा,
परी कहता था दलाल
मंत्री बन गया है ,
आज तवायफ कह गया -

हल्के  हो  जाते हैं बरस कर
ये बादल भी,
न इनकी कोई जमीं होती
न आसमां होता-
                   
किसी नाम की तलाश नहीं है
कुए- मुकाम में दोस्त
मुझे मालूम है अपना नाम
और लिखना भी आता है-


इफरात हैं दो हाथ सिजदे को
संवरने को जीने को मितरां ,
रब उनको भी पनाह देता है ,
जिनके हाथ नहीं होते-



                       ---  उदय वीर सिंह




2 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

इफरात हैं दो हाथ सिजदे को
संवरने को जीने को मितरां ,
रब उनको भी पनाह देता है ,
जिनके हाथ नहीं होते-

वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,

RECENT POST: नूतनता और उर्वरा,

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... सच है रब हर किसी का साथ देता है ...