जो कहा है , आज तुमने
ये तुम्हारा स्वर नहीं है-
सोच लो बैठे जहाँ हो
वो तुम्हारा घर नहीं है-
खा रहे हो कसमें जिनकी
वो कोई ईश्वर नहीं है -
चल दिए हो हाथ पकडे,
वो तेरा रहबर नहीं है-
तुम तो डरते हो जिंदगी से
उसे क़यामत से डर नहीं है-
-- उदय वीर सिंह
ये तुम्हारा स्वर नहीं है-
सोच लो बैठे जहाँ हो
वो तुम्हारा घर नहीं है-
खा रहे हो कसमें जिनकी
वो कोई ईश्वर नहीं है -
चल दिए हो हाथ पकडे,
वो तेरा रहबर नहीं है-
तुम तो डरते हो जिंदगी से
उसे क़यामत से डर नहीं है-
-- उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
आपकी यह रचना कल मंगलवार (21 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
sundar abhivyakti....
वाह !!! बहुत उम्दा गजल,,,
Recent post: जनता सबक सिखायेगी...
बहुत प्रभावी रचना।
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