बुधवार, 10 अप्रैल 2013

प्रतिमान गढ़ना...


विननम्रता के प्रतिमान गढ़ना
नम्रता   के  नव  - गान  पढ़ना
शील    की    मधु  - मंजरी    से
प्रेम -  रस    का    पान   करना -

शत्रु   के   कर   शश्त्र  सज्जित

सौहार्द्र   से  हो  जाएँ  लज्जित
चरित्र    की    लालित्य   गागर
सौर्य    व     सम्मान      भरना-

स्वाभिमान   की   कारा   मिले

तज   उन्माद  की   स्वच्छंदता
विद्वेष     से    सहकार    सुन्दर
मनुष्यता   से     प्यार   करना-

अभिशप्त   हो  जाता  है  जीवन

नद     सुखते    जब    स्नेह   के
संकल्प    ले   निज   चक्षुओं  से
दो बूंद ही सही प्रतिदान  करना-

अखंड   अदम्य  देश  के   नरेश

शक्तियां   समस्त    प्रशस्त्र   हों
आवाम ने दिया सम्मान इतना
तुम आवाम का सम्मान करना -

संभाव्यता  के  पथ  सृजित  हों   

नैराश्य    का   उनवान   वर्जित
जब   विकल्प    ही   विद्रोह   हो
निज  शीश  हँसकर दान करना -  


                    -    उदय वीर  सिंह    


6 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

अखंड अदम्य देश के नरेश
शक्तियां समस्त प्रशस्त्र हों
आवाम ने दिया सम्मान इतना
तुम आवाम का सम्मान करना -

उम्दा,बहुत प्रभावी प्रस्तुति !!! उदय जी

recent post : भूल जाते है लोग,

रविकर ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति-
शुभकामनायें स्वीकारें-

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रभावी रचना,आभार.
"जानिये: माइग्रेन के कारण और निवारण"

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

सृजनशील और ओजस्वी प्रवृत्तियों का आवाहन करती प्राण भर देने वाली साहसी गीत जिससे भारत की गौरव गाथा भरी पड़ी है. वैशाखी का पूर्वाभास दे रही इस रचना के लिए हार्दिक बधाई और नमस्कार.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

भावो की प्रधानता लिए ... ओज़स्वी रचना ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जो लड़े दीन के हेत, सूरा सोही