क्या ओढेगा क्या बिछाएगा ..?
अश्क बहा लोगे तो क्या दर्द का
सिलसिला ख़त्म हो जायेगा -
बहाते रहे हैं सियासतदान अक्सर
क्या उनकी राह तू चल पायेगा -
अश्क को खून बनाने का जूनून रख
बहायेगा तो मंजिल पायेगा - .
पांव की बेड़ियाँ कभी मंजिल देती नहीं
जब टूटेंगी तभी दौड़ पायेगा-
सूखी रोटियां भी नहीं ,पानी में भिगोने के लिए
बहाने जीने के कब तक बनाएगा -
सोच आखिर शिर से पांव तक
शहर से गाँव तक तेरा क्या है
क्या ओढेगा क्या बिछाएगा .....
-- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
वाह! वाह! क्या बात है!!!
gahan ...sundar prastuti ....!!
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