उठता है ज्वाल जलधि में भी जब
संयम की कोख जल जाती है -
हृदय गरल भी पी लेता है जब पीर सही न जाती है -
कांच खनकता , हृदय नहीं
जब ठेस कभी लग जाती है -
मंगल मन का क्षितिज जले
वह बात नहीं की जाती है -
नयन की सरिता बंध नहीं
अबिरल धार बह जाती है -
मौन हृदय का आवेदन
वाचाल पलक कह जाती है -
रो उठता हिय अंक बावरे
अग्नि तुषार बन जाती है-
-उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर भावों की अभिव्यक्ति,,,,
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बहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..
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