शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

जवाब रखे थे -


शायद अब  सांप बनने लगे  हैं फूल,
वरना  हमने  जेब  में गुलाब रखे थे -

कमाल है पढ़े जाने लगे हैं धर्म-ग्रन्थ 
वरना  जेलों  में   तो  कसाब  रखे थे -

मशगुल  थे  सिर्फ  सवाल पूछने  में,
सवालों में ही कितने  जवाब रखे थे - 

अंदेसा  है फरेब  का कहते  सरेआम
पढ़  न  सके  पास में किताब रखे थे- 

नादाँ  थे , न पहचान  सके पत्थरों में 
कितने     हीरे    लाजवाब    रखे   थे-

                              -  उदय वीर सिंह  

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अंदेसा है फरेब का कहते सरेआम
पढ़ न सके पास में किताब रखे थे-

बहुत दमदार..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

नादाँ थे,न पहचान सके पत्थरों में
कितने हीरे लाजवाब रखे थे,,,उम्दा शेर -


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