गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

- मां से मां तक ...



- मां से मां तक ...     
किधर गया ? कहाँ गया ?,
कहता है - बड़ा हो गया हूँ   
नहीं सुनता है कहा मेरा ,....
अरे! कितना बड़ा हो गया , मेरा काका ही तो है 
कहा था शीघ्र आने  को  
नहीं आया अब तक  ....
-
उसे संगीत  की आदत है  
धमाकों  की नहीं .... 
डांट खाने से भी डरता है  
गोलियों का बेदर्दीपन नहीं जनता वो 
आम आदमी का बेटा है  
बुलेट -प्रूफ नहीं, मिर्जई  पहनता है .....  

फूलों  की  सुगंध  भाती है    
बारूद से वास्ता नहीं  उसे  ...
लाल रंग से  मुहब्बत इतनी 
रंग लेता है हाथ ,सफ़ेद फूलों को भी 
नहीं देख  पायेगा शरीर से 
लाळ रंग ....बहता हुआ... 

उसका बाप भी गया था बाजार  
सयाना था, फिर भी 
बारूद की ज्वाला में गुम हो गया 
मुझे वैधव्य देकर .....
ये तो बच्चा है
वाकिफ नहीं आतंक की गलियों से 
मिल जाएँ किस 
मोड़ पर ........
मुझसे पहले .न अतीत बनना,
मेरे वर्तमान!
भविष्य मेरा
छीन कर .........  

                         -उदय  वीर सिंह 







6 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हर मन में भय है..... यह हर माँ काद्वंद्व है .....

Dinesh pareek ने कहा…

हर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब कहा अपने आभार
ये कैसी मोहब्बत है

Dinesh pareek ने कहा…

हर शब्द की अपनी एक पहचान बहुत खूब क्या खूब लिखा है आपने आभार
ये कैसी मोहब्बत है

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चिन्ता तो लगी ही रहती है, माँ का हृदय ही तो है।