गुरुवार, 12 जुलाई 2012

सुरम्या

उतरती बादलों की
सुरम्य गोंद से ,
तिरती ,लहराती 
करती अठखेलियाँ ,
मंद मलय का सानिद्ध्य ,
स्वेत,लहरियां 
अप्सराओं के मानिंद ,
लिपटी धवल धार,
प्रवाह में   
चपला का प्रहरी ,
 उद्घोष ! 
आगमन....
झिलमिल रश्मियों के,
सात आँचल ,
सप्त रंगों में सजे 
तोरणद्वार से ....
अविस्मरनीय ,स्नेहिल परिमल संग 
स्वागतम  !
खुले ह्रदय ,कंठ ,
पुलकित  नेत्र संतृप्त,
धरा के ,
करते   आभार !
कोटरों से झांकते,खग,
नहाते आशीष देते
पल्लव ,जीव,जंतु,...
प्रकृति श्रृंगार करेगी ,
पुरुष अवतरित होगा ,
बनेंगे गीत ,
सृजनारम्भ होगा ,
कलरव का ,
कुमुद  
का ....
                            उदय वीर सिंह  
                    

11 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

सुन्दर चित्रण....

सादर
अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत शब्दों का चयन और उतनी ही खूबसूरत रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

प्रकृति श्रृंगार करेगी ,
पुरुष अवतैत होगा ,
बनेंगे गीत ,
सृजनारम्भ होगा ,
कलरव का ,
नवीन कुमुद
का ....

बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,

RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

क्या खूब...
सादर.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bahut khubsurat shabd chitran... abhar!
aapko follow karna pada....:)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जंगल में मंगल हुआ, हरा-भरा परिवेश।
वन की आभा दे रही, हमको ये सन्देश।

RADHIKA ने कहा…

सुन्दर रचना ....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रमे प्रकृति में मधुर सुरम्या..

Satish Saxena ने कहा…

बहुत प्यारी रचना ...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

शब्दों और भावों का सुंदर मेल।

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ .... सुंदर प्रस्तुति.