जीवन ये आईना है , सूरत तो देखिये ,
क्या अक्स ,दिख रहा है ,मंजर तो देखिये -
जिस राह वो गए , वो राह रो पड़ी ,
विरान गुलसितां की , हालत तो देखिये-
हमकदम , हमराह बन संवारेंगे ये चमन ,
दुआ - मंद हाथ में , नश्तर तो देखिये -
आँखों में नूर था , नूरानी ख्याल था ,
खूने-जिगर की प्यास में, खंजर तो देखिये -
तकरीह थी मुकम्मल , आवाम की गली ,
महफ़िल में जाम थामे ,फकीर देखिए -
टूटी है हर तरफ , हया की खिड़कियाँ
बनने को सिर का ताज हसरत तो देखिये -
इन्सान हम रहे कि नहीं ,खुद से पूछिये,
क्या वक्त चाहता है , जरुरत तो देखिये -
उदय वीर सिंह
क्या अक्स ,दिख रहा है ,मंजर तो देखिये -
जिस राह वो गए , वो राह रो पड़ी ,
विरान गुलसितां की , हालत तो देखिये-
हमकदम , हमराह बन संवारेंगे ये चमन ,
दुआ - मंद हाथ में , नश्तर तो देखिये -
आँखों में नूर था , नूरानी ख्याल था ,
खूने-जिगर की प्यास में, खंजर तो देखिये -
तकरीह थी मुकम्मल , आवाम की गली ,
महफ़िल में जाम थामे ,फकीर देखिए -
टूटी है हर तरफ , हया की खिड़कियाँ
बनने को सिर का ताज हसरत तो देखिये -
इन्सान हम रहे कि नहीं ,खुद से पूछिये,
क्या वक्त चाहता है , जरुरत तो देखिये -
उदय वीर सिंह
10 टिप्पणियां:
आँखों में नूर था , नूरानी ख्याल था ,
खूने-जिगर की प्यास में, खंजर तो देखिये -
मोहक सुंदर गजल,,,,,,
जीवन ये , आईना है , सूरत तो देखिये ,
क्या अक्स ,दिख रहा है ,मंजर तो देखिये -
भैया मेरे! दर्पण देखना बहुत ही कठिन कार्य है. इसे देखने का मतलब तिलमिला उठना है. अपनी त्रुटियाँ हमें स्वीकार कहाँ
बकौल ग़ालिब - आइना देखकर लौटा हूँ, ग़ालिब के चेहरे पर दाग थे, देता था तोहमत देखने वालों को. बधाई एक बार दर्पण जरूर देखेंगे और सुधार भी करंगे. वादा रहा. नमस्कार प्रेरणा के लिए.
सच कहा है, बहुत खूब कहा है।
इन्सान हम रहे कि नहीं ,खुद से पूछिये,
क्या वक्त चाहता है , जरुरत तो देखिये -
....बहुत खूब ! बेहतरीन गज़ल....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (09-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
इन्सान हम रहे कि नहीं ,खुद से पूछिये,
क्या वक्त चाहता है , जरुरत तो देखिये -
कठिन है लेकिन बहुत जरुरी है इस दर्पण में खुद को देखना... सुंदर रचना के लिए आभार
बहुत खूब............
बहूत हि सुंदर रचना...
baut hi sundar rachana...
बेहतरीन प्रस्तुति
(अरुन =arunsblog.in)
एक टिप्पणी भेजें