मई दिवस की याद में..
मुशीबत बन गया है, निवाला गरीब का,
हसरत बन गया है ,उजाला गरीब का-
खैरात में मिला कभी ,पाया हिजाब से
दर्द बन गया है , दुशाला गरीब का -
कमाल है कि किश्ती , भंवर से निकाल ली
किनारे आ डूबता है , सफीना गरीब का -
वो ठोकरों से पूछा , अपने गुनाह को ,
अब नमूना बन गया है, फूटे नसीब का -
कुर्बान कर दी जन्नत , उम्रो , जमाल भी
बदबूदार हो गया है ,पसीना गरीब का -
माहताब ढूंढ़ लेता , मयखाना वो महफिलें
अब तक नढूंढ़ पाया ,आशियाना गरीब का -
उदय वीर सिंह .
10 टिप्पणियां:
माहताब ढूंढ़ लेता मयखाना वो महफिलें
अब तक नढूंढ़ पाया आशियाना गरीब का -
वाह !! बहुत सुंदर प्रस्तुति मजदूर दिवस पर...बेहतरीन रचना के लिए बधाई ...
MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
बुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
सार्थक, सामयिक, सुन्दर, बधाई
आज के दिन इस ग़रीब शब्द को मज़दूर से बदल देता हूं और फिर
बदबूदार हो गया है ,पसीना गरीब का
बदबूदार हो गया है ,पसीना मज़दूर का
देखिए चमत्कार। मज़दूर अगर पसीना न बहाएं तो वे जो आलीशान कोठे पर रहते हैं उनको सुख चैन कहां से मिले। पर उन्हें तो वही पसीना बदबूदार लगेगा ही।
मुशीबत बन गया है निवाला गरीब का,
हसरत बन गया है उजाला गरीब का-
सच्चाई यही है... मजदूर दिवस पर सटीक प्रस्तुति...
बहुत ही मार्मिक एवं सारगर्भित प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपके एक-एक शब्द मेरा मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ नई उर्जा भी प्रदान करने में समर्ख होंगे । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति मजदूर दिवस पर...बेहतरीन रचना के लिए बधाई ..
प्रभावित करती सुंदर रचना,.....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
मजदूर दिवस पर सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई
समाज और श्रमिक का सत्य व्यक्त करती कविता।
खैरात में मिला कभी ,पाया हिजाब से
दर्द बन गया है , दुशाला गरीब का
मई दिवस पर गरीब की इस से बढ़ कर और कैसे व्यथा बयां होती...वाह...कमाल किया है आपने
नीरज
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