शनिवार, 21 अप्रैल 2012

रोजमर्रा के दर्द

रोज   चढ़ते   हैं  एवरेस्ट  पर ,फिसल  जाते  हैं ,
जिंदगी है कि मानती नहीं, कदम बेकार हो गए हैं -


रोजमर्रा  के मर्ज इतने कि ,बेहिसाब हो गए हैं ,
ख़ुशी   के   दो  पल  भी , अब   ख्वाब  हो  गए हैं -


रेल आरक्षण के दलाल ,यात्रा पर निलकल पड़े ,
चेहरे   जरुरतमंद     के  ,  स्याह    हो    गए   हैं -


आगे,  नो  स्टाक , पिछले  दरवाजे  से इफ़रात,
रसोई - गैस  की  मारामारी  में ,तबाह हो गए हैं -


तिगुने  दाम  पर, मिलने  का  भरोषा मिल गया ,
अहसान    कर   रहे  हैं , जैसे   अल्लाह हो गए हैं-


राशन  की   दुकान   खाली,  चीनी   तेल   गायब ,
बंट   गया  आवाम  को , क्या   जवाब ! हो गए हैं-


डायल  किया  नहीं,  कि  बिल आ  गया फोन का ,
हजारों   के   बकायेदार   हम  ,जनाब   हो  गए हैं -


बिजली  का  बिल  आया ,तो  देख  ग़श  आ  गया ,
दो कमरे में जलती बत्तियों के बिल हजार हो गए हैं -


बच्चा    पास    परीक्षा   में ,  हम    फेल  हो   गए,
देने   में   डोनेसन   हम ,  नाकामयाब   हो  गए हैं-


हॉउस,वाटर ,इनकम,सर्विस. टैक्स ही तो भर रहे ,
करप्सन-टैक्स भी लागु हो जायेगा आसार हो गए हैं-


                                                        उदय वीर सिंह
                                                         21 -04-2012
  










8 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

रोज चढ़ते हैं एवरेस्ट पर ,फिसल जाते हैं ,
जिंदगी है कि मानती नहीं, कदम बेकार हो गए हैं -


रोजमर्रा के मर्ज इतने कि ,बेहिसाब हो गए हैं ,
ख़ुशी के दो पल भी , अब ख्वाब हो गए हैं -

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,बेहतरीन रचना,...

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vikram7 ने कहा…

rojamrra ka ya drd sahana hii padata hae ,jiivan jiina hii padata hae,ati sundar rachana.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब, रेलवे भी निशाने पर है।

रविकर ने कहा…

बहुत खूब भाई जी ||


दर्द भी देता मजा -
हम आजमाते जा रहे |
राशन दुकाने ठप्प हैं -
हम गम हमेशा खा रहे |
काला-बजारी जोर पर-
है कृपा उसकी पा रहे |
टैक्स देते ढेर सारे-
अब करप्सन ला रहे ||


बहुत बढ़िया ||

रचना दीक्षित ने कहा…

हॉउस,वाटर ,इनकम,सर्विस. टैक्स ही तो भर रहे ,
करप्सन-टैक्स भी लागु हो जायेगा आसार हो गए हैं-


आईडिया बुरा नहीं है. प्रणव दा अगले बज़ट में जरूर ख्याल रखेंगे.

सुंदर व्यंग बेहतरीन प्रस्तुति.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

रोजमर्रा के मर्ज इतने कि ,बेहिसाब हो गए हैं ,
ख़ुशी के दो पल भी , अब ख्वाब हो गए हैं -


बढि़या ग़ज़ल।

अरुन अनन्त ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति !!! लाजवाब
मज़ा आ गया.

Smart Indian ने कहा…

दुखद स्थिति का मधुर चित्रण!